मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011


गुरू महिमा

 
          गुरू ऐसा ज्ञानदाता है जिसके ज्ञान की झोली जीवन पर्यन्त ज्ञानदान करते रहने के बाद भी खाली नही होती गुरू के सानिध्य में शिष्य अपने लक्ष्य को पाने की दिशा में अग्रसर होता है गुरू कृपा रंक को राजा, और मुर्ख को महाज्ञानी बनाने का सामर्थ्य रखते है ! कहा जाता है कि एक चाणयक्य सैकड़ो चन्द्रगुप्त बना सकता है अरस्तु में सैकड़ो सिकंदरो को महान बनाने की क्षमता होती है लेकिन ये सम्राट सिकन्दर भी इस गुरू का निर्माण नही कर सकते गुरू के बिना शिष्य अधूरा है गुरू ज्ञान की वह पगडंडी है, जिस पर चलते-चलते एक दिन शिष्य सफलता के राजमार्ग पर कदम रखता है गुरू शिष्य के साथ संस्कार भी प्रदान करता है गुरू में स्नेह का सागर है तो कठोरता का अंश भी
          कहा जाता है कि सदगुरू की महिमा ऐसी बताई जाती है कि भगवान नाराज हो जाये तो गुरू बचा सकते है, लेकिन गुरू नाराज हो जाये तो भगवान भी नही बचाने वाले इतनी महिमा है गुरू की
          आज के भौतिकवादी युग में मानव अपनी महत्वाकांक्षा एवं तृष्णा को पूर्ण करने के लिये संघर्षरत रहता है इस पथ का प्रदर्शक एक मात्र गुरू ही होता  है गुरू हमारे विकास का कारण है वह कल्याण का मित्र है वह शिष्य की प्रतिभा को सर्वोच्च स्तर पर ले जाने की क्षमता रखता है, जैसा की श्री कृष्ण ने अजुर्न के साथ किया
          गुरू शिष्य से कुछ अपेक्षा नही रखता इसलिये शिष्य सहज रूप से झुक जाता है क्योकि गुरू के व्ययतित्व में एक आकर्षण है
          जब से भारत मे शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ तथा शिक्षक का पदार्पण हुआ, गुरू विदा हो गया तभी से भारत का सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, नैतिक एवं शैक्षणिक पतन हुआ, अन्यथा तो हम संसार के सिरमौर होते एक बात और गुरू को सब बता दो उनसे कुछ छिपा नही है इस संसार रूपी गंदे नाले मे से ही गुरू एक-एक को छांटकर धोता, पोछता, कूटता-पीटता है तत्पश्चात उस पारस रूपी गुरू स्पर्श से लौहरूपी शिष्य का जीवन स्वर्णिम होता चला जाता है गुरू का पहला अक्षर ’’गु’’ अंधकार का वाचक है और ’’रू’’ प्रकाश का वाचक है इस तरह गुरू वह तत्व है जो अज्ञानरूपी अंधकार का नाश करके ज्ञानरूपी तेज का प्रकाश करता है ऐसे सदगुरू के लिय लगन, उनको पाने के लिए गहरी चाहत, उनके चरणों में अपने सर्वस्व समर्पण के लिए आतुरता में ही, इस मनुष्य जीवन की सार्थकता है परम लक्ष्य के लिये वृक्ष ऐसे मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है जो उसके शक्ति के द्वारा उस मार्ग को सुगम बना सकें यह कार्य गुरू के बिना किसी भी युग में संभव नही है